न्याय के सार्वलौकिक और स्थिर आधार तत्व
(UNIVERSAL AND INVARIANT POSTULATES OF JUSTICE)
(1)
सत्य-यद्यपि
राडब्रुच (Radbruch) का विचार है कि, 'न्याय का प्रत्यक्ष सम्बन्ध केवल अच्छाई से होता है, सत्य से नहीं; सत्य तो विज्ञान का क्षेत्र है' लेकिन वास्तव में सत्य न्याय का एक
बहुत अधिक महत्वपूर्ण तत्व है। वस्तुनिष्ठ रूप (Objectives sense) में न्याय की मांग है कि
तथ्य और सम्बन्ध विषयक अपने सभी कथनों में हम सत्य का प्रयोग करें। व्यक्तिनिष्ठ
रूप (Subjective
sense) में इसका आशय यह है कि
विभिन्न व्यक्तियों और वस्तुओं के सम्बन्ध में हम यही विचार प्रकट करें, जिसे हम ठीक समझते हैं। विशेष रूप
में न्याय के प्रशासन में तथ्यों की सत्यता का बहुत अधिक महत्व है।
(2) मूल्यों के आधारभूत क्रम की सामान्यता (Normality of the basic
order of values ) - विभिन्न
मामलों के विषय में विचार करते न्याय की एक ही धारणा को लागू किया जाना चाहिए। यह
नितान्त अनुचित होगा कि हमारे द्वारा एक मामले में न्याय की एक धारणा को और दूसरे
मामले में न्याय की किसी अन्य धारणा को लागू किया जाए।
(3)
कानून
के समक्ष समानता या समानता का व्यवहार(Equality or equality before the
law)—कानून के सामने सभी समान होने चाहिए
और उनके प्रति समानता का व्यवहार किया जाना चाहिए। एक ही प्रकार की स्थितियों में
मनमाने ढंग से भेद करना अन्यायपूर्ण है। किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, भाषा, लिंग
के आधार पर भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति तथा
विकास के समान अवसर प्राप्त होने चाहिए।
(4)
स्वतन्त्रता(Freedom ) - उचित रुकावटों के अलावा मनुष्य की
स्वतन्त्रता पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। मनमाने ढंग से व्यक्ति की स्वतन्त्रता
पर रुकावटें लगाना अन्यायपूर्ण है। शासक को अपने स्वार्थ या शक्ति को बनाये रखने
के लिए ही व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कोई रुकावटें नहीं लगानी चाहिए।
(5)
प्रकृति
की अनिवार्यताओं के प्रति सम्मान (Respect for the essentials of nature) – जो कार्य व्यक्ति की सामर्थ्य के बाहर हैं और जो कार्य
प्रकृति की ओर से व्यक्ति के लिए असम्भव हैं, उन्हें करने के लिए व्यक्ति को मजबूर करना न्याय भावना के
विरुद्ध है। अतः जिन कानूनों या आदेशों का पालन करना मनुष्य के लिए सम्भव नहीं है, ऐसे कानूनों या आदेशों की, अवहेलना
करने पर व्यक्ति को दण्ड देना या उसकी निन्दा करना भी अन्यायपूर्ण है। उदाहरण के
लिए, बहुत अधिक वृद्ध, अन्धे या अपंग व्यक्ति के लिए समाज
की दया के आधार पर जीवन व्यतीत करना न्यायपूर्ण है, लेकिन ऐसा व्यक्ति जो शारीरिक और मानसिक दृष्टि से ठीक
है उसके लिए खुद काम करके रोजी ही कमाना न्यायपूर्ण है।
स्थानीय, राष्ट्रीय या अन्तर्राष्ट्रीय सभी
क्षेत्रों में न्याय को प्राप्त करने के लिए उपर्युक्त पांच सिद्धान्तों का पालन
आवश्यक है।
Read the👉👉👉📖📖📖 आई.पी.एस. अफसर (IPS OFFICER)
(MEASURES FOR
THE ATTAINMENT OF LEGAL JUSTICE)
यथप
राजनीतिक चिन्तन में न्याय की धारणा पर विविध दृष्टि से विचार किया जाता रहा है, लेकिन न्याय का तात्पर्य प्रमुख रूप से कानूनी न्याय से ही
लिया जाता है। कानूनी रूप से न्याय की प्राप्ति व्यक्ति के लिये निश्चित रूप से बहुत
अधिक महत्वपूर्ण है और यह तभी सम्भव है, जबकि न्याय का ढांचा
स्वतन्त्र और निष्पक्ष हो। लॉस्की के द्वारा अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'राजनीति के मूल तत्व' (Grammar of Politics) में कानूनी न्याय प्राप्त
करने के साधनों का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है।' इस सम्बन्ध में लॉस्की की विवेचना और अन्य विचारों के आधार पर
यह कहा जा सकता है कि कानूनी न्याय को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित साधन प्रमुख
से अपनाए जाने चाहिए :
(1) न्यायपालिका का कार्यपालिका
के प्रभाव से मुक्त होना(The judiciary to be free from the influence of the
executive) —यह एक सर्वमान्य बात है. कि यदि न्यायपालिका कार्यपालिका के दबाव से मुक्त नहीं
हुई, तो उसके द्वारा निष्पक्ष रूप से
न्याय प्रदान करने का कार्य नहीं किया जा सकेगा। विधियों की व्याख्या का कार्य ऐसे
व्यक्तियों को सौंपा जाना चाहिए, जिनके विचार पर कार्यपालिक
का विचार हावी न हो सके। केवल इतना ही नहीं,
वरन वे इस
योग्य होने चाहिए कि उनके द्वारा ज़रूरत पड़ने पर कार्यपालिका या व्यवस्थापिका से
जवाब तलब किया जा सके। न केवल सर्वोच्च स्तर पर वरन निम्न स्त पर भी न्यायपालिका
कार्यपालिका के दबाव से मुक्त होनी चाहिए।
(2) न्यायाधीशों की नियुक्ति, चुनाव नहीं (Appointment of judges, not elections) —–न्यायाधीशों के सम्बन्ध में प्रमुख रूप से तीन विधियां
प्रचलित हैं- (i) जनता द्वारा निर्वाचन,
(ii) व्यवस्थापिका
सभा द्वारा निर्वाचन, और (iii) कार्यपालिका द्वारा नियक्ति।
'इनमें जनता द्वारा न्यायाधीशों के निर्वाचन की पद्धति
निश्चित रूप से सबसे अधिक बुरी है।” और
व्यवस्थापिका सभा द्वारा न्यायाधीशों का चुनाव किए जाने पर भी न्यायाधीश पद
दलबन्दी का शिकार बन जाएगा। अतः न्यायाधीशों की कार्यपालिका द्वारा नियुक्ति की
पद्धति ही सबसे अधिक श्रेष्ठ है। लॉस्की ने लिखा है, "इस
विषय में सभी बातों को देखते हुए न्यायाधीशों की कार्यपालिका द्वारा नियुक्ति के
परिणाम सबसे अच्छे रहे हैं। परन्तु यह अति आवश्यक है कि न्यायाधीशों के पदों को
राजनीतिक सेवा का फल नहीं बनाया जाना चाहिए।"
(3) न्यायाधीशों के लिए उच्च
योग्यताएं(Higher qualifications for judges) -न्याय की उचित रूप में
प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि न्यायाधीशों का पद केवल ऐसे ही व्यक्तियों को प्रदान
किया जाए, जिनकी व्यावसायिक कुशलता और
निष्पक्षता सर्वमान्य हो। न केवल उच्च, वरन् निचले न्यायाधीशों के
पद पर भी ऐसे व्यक्तियों को नियुक्त किया जाना चाहिए, जो योग्य और विधि के बहुत अच्छे ज्ञाता हों।
(4) पर्याप्त वेतन और पदोनति के
अवसर हैमिल्टन ने अपनी पुस्तक 'राजनीति के तत्व' (Elements of Politics) में लिखा है कि 'यह मानव स्वभाव है कि जो
व्यक्ति अपनी आजीविका की दृष्टि से शक्ति सम्पन्न हैं, उनके पास संकल्प की शक्ति का भी बड़ा बल होता है।' यह कथन पूर्ण सत्य है और इसके आधार पर कहा जा सकता है कि
न्यायाधीशों को निश्चित और पर्याप्त वेतन दिया जाना चाहिए। इस बात की आशंका बनी
रहती है कि कम वेतन पाने वाले न्यायाधीश भ्रष्टाचार के शिकार हो जाएंगे। इसके
अलावा न्यायाधीशों को पदोन्नति के अवसर भी दिए जाने चाहिए, जिससे उनकी अपने कार्य में रुचि बनी रहे।
(5) लम्बा कार्यकाल और पद की
सुरक्षा (Long tenure and security of the post) -न्यायाधीशों
का कार्यकाल लम्बा होना चाहिए तथा सामान्यतया ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि वे
सदाचार-पर्यन्त अपने पद पर बने
रहें। लम्बा कार्यकाल होने पर न्यायाधीश अपने कार्य का अनुभव प्राप्त कर अधिक कुशल
बन जाते हैं एवं स्वतन्त्रता और निष्पक्षता के साथ अपना कार्य कर सकते हैं। इसके
साथ ही ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि न्यायाधीशों को पद की सुरक्षा प्राप्त हो और
कार्यपालिका अपनी इच्छानुसार उन्हें न हटा सके। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि
न्यायाधीशों को भ्रष्टता या अयोग्यता की स्थिति में केवल व्यवस्थापिका के द्वारा
विशेष बहुमत से महाभियोग का प्रस्ताव पास करके ही हटाया जा सके। कार्यपालिका
द्वारा न्यायाधीशों की आलोचना भी नहीं की जानी चाहिए।
(6) न्यायाधीशों के लिए अवकाश
प्राप्ति के बाद व्यवसाय निषेध (Prohibition of occupation after retirement for
judges) -शक्ति के बुरे प्रयोग को रोकने के
लिए भी आवश्यक है कि न्यायाधीश को अवकाश प्राप्ति के बाद वकालत करने के लिए निषेध
किया जाए। इस सम्बन्ध हेराल्ड लॉस्की, राजनीति के मूल तत्व,
में
इतनी व्यवस्था तो अवश्य की जानी चाहिए कि एक व्यक्ति जिन न्यायालयों में न्यायाधीश
के रूप में कार्य हो, कम-से-कम उन न्यायालयों या उनके
क्षेत्राधिकार में आने वाले अन्य न्यायालयों में वकालत का कर चुका कार्य न कर सके।
इसके साथ ही अनेक विचारक यह भी सुझाव देते हैं कि जो व्यक्ति एक बार न्यायिक पद
प्राप्त कर चुका हो, उसे किसी भी राजनीतिक या कार्यपालिका
पद के पात्र नहीं समझा जाना चाहिए।
(7) ज्यूरी व्यवस्था(Jury system) -सामान्यतया ज्यूरी की
व्यवस्था को न्याय की प्राप्ति में सहायक ही पाया गया है। इसलिए सभी फौजदारी
मामलों में और सार्वजनिक हितों से सम्बन्धित दीवानी मामलों में ज्यूरी की व्यवस्था
होनी चाहिए। ज्यूरी का सदस्य होने के लिए सम्पत्ति का मालिक होना जरूरी नहीं समझा
जाना चाहिए। ज्यूरी के सदस्य को उचित पारिश्रमिक दिया जाना चाहिए, जिससे उनकी अपने कार्य में रुचि रहे। ज्यूरी के निर्णयों, विशेषतया फौजदारी मामलों में उनके निर्णयों के विरुद्ध अपील
की व्यवस्था की जानी चाहिए।
(8) न्याय में समानता की व्यवस्था(Provision of equality in justice) — न्याय में समानता के लक्ष्य को प्राप्त किया जाना बहुत आवश्यक है, नहीं तो न्याय धनीमानी वर्ग की सुविधा बनकर रह जाएगा। न्याय में समानता को प्राप्त करने के लिए दो व्यवस्थाएं 'मुफ्त जरूरी हैं—पहली, विशेषाधिकारों की समाप्ति और दूसरी निःशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था। वास्तव में, कानूनी सहायता' (Free Legal Aid) की व्यवस्था होने पर ही साधारण व्यक्ति न्याय प्राप्त करने की आशा कर सकता भारत में अभी हाल ही के वर्षों में 'मुफ्त कानूनी सहायता' की व्यवस्था करने की कोशिश की जा रही है। उपर्युक्त व्यवस्थाएं कर लेने पर ही कानूनी न्याय को प्राप्त करने की आशा की जा सकती है।
(Read the 👉👉👉Political, social and economic justice in the Indian Constitution)
[YOU CAN VISIT THIS WEBSITE FOR
UPSC,BPSC,JPSC,STATE PCS,POLITICAL SCIENCE HONOURS,HISTORY HONOURS IMPORTANT
NEWS, FAMOUS MAN,UPSC RELEATED POST AND OTHER EXAM]
“It is better to read one book for ten times, than to read ten books for time.”
(Read the👉👉👉📖📖📖 Sageguards of liberty)

Hi
जवाब देंहटाएंHello
जवाब देंहटाएं