स्वतन्त्रता के संरक्षण (SAFEGUARDS OF LIBERTY )
- (1) आदर्श कानून (Model law) -
- (2) विशेषाधिकार का अन्त (End of privilege) -
- (3) लोकतन्त्रीय शासन (Democratic governance) -
- (4) मूल अधिकार (Fundamental rights) —
- (5) स्वतन्त्र न्यायालय(Independent Court) -
- (6) सतत जागरूकता (Continuous awareness) –
- (7) शक्तियों का पृथक्करण तथा अवरोध और असन्तुलन (Separation of powers and obstruction and imbalance) -
- (8) आर्थिक न्याय (Economic Justice) –
- (9) स्वतन्त्र प्रेस (Free Press) —
- (10) स्थानीय स्वशासन (Local Self Government) -
(1) आदर्श कानून (Model law) -
व्यक्ति अपनी विविध स्वतन्त्रताओं का
उपयोग राज्य में रहकर ही कर सकता है और राज्य कानूनों के माध्यम से ही इस प्रकार
की स्वतन्त्रताओं की रक्षा करता है। इस प्रकार साधारणतया कानून व्यक्तियों की
स्वतन्त्रता की रक्षा करते हैं किन्तु राज्य द्वारा निर्मित सभी प्रकार के कानूनों
के सम्बन्ध में इस प्रकार की बात नहीं कही जा सकती है। अतः स्वतन्त्रता की रक्षा
के लिए राज्य द्वारा ऐसे आदर्श
कानूनी
का निर्माण किया जाना चाहिए, जो व्यक्तियों की
स्वतन्त्रता की रक्षा कर सके और व्यक्तित्व के विकास हेतु आवश्यक सुविधाएं भी
प्रदान कर सके। स्वतन्त्रता की रक्षा हेतु आदर्श कानूनों के निर्माण की आवश्यकता
बताते हुए माण्टेस्क्यू ने कहा है कि "मुख्यतया
स्वतन्त्रता की रक्षा और हनन कानून के स्वभाव और इसके द्वारा दिए गए दण्ड की
मात्रा पर निर्भर करती है।"
(2) विशेषाधिकार का अन्त (End of privilege) -
जिस समाज में कुछ व्यक्तियों
को धर्म, जाति या सम्पत्ति के आधार पर कुछ
विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, वहां पर सभी नागरिकों की
स्वतन्त्रता की पूर्ण रक्षा नहीं हो पाती हैं। जिन लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त
होते हैं, वे अहं भाव के कारण उनका दुरुपयोग
करते हैं और दूसरे लोग हीनता की भावना के कारण इन स्वतन्त्रताओं का उचित उपयोग
नहीं कर पाते हैं। इसलिए स्वतन्त्रता की रक्षा हेतु विशेषाधिकारों का अन्त नितान्त
आवश्यक है। लॉस्की के शब्दों में “यदि
समाज के किसी भाग को विशेषाधिकार दिए गए हों तो उस दशा में जनसाधारण स्वतन्त्रता
का उपयोग नहीं कर सकता।"
(3) लोकतन्त्रीय शासन (Democratic governance) -
व्यक्तियों को अपनी
स्वतन्त्रता के हनन का सबसे अधिक भय शासन से होता है, किन्तु यदि लोकतन्त्रीय शासन हो तो जनता का यह भय कुछ सीमा तक
समाप्त हो जाता है। लोकतन्त्र में जनता शासित होने के साथ-साथ शासक भी होती है और शासन की अन्तिम सत्ता जनता में निहित
होने के कारण स्वतन्त्रता का हनन हो ही नहीं सकता। यही कारण है कि नागरिकों की
स्वतन्त्रता की रक्षा और व्यक्तित्व के विकास हेतु लोकतन्त्रात्मक शासन ही
सर्वोच्च समझा जाता है। परन्तु इस लोकतन्त्रात्मक शासन के साथ साथ यह आवश्यक है कि
जनता में लोकतन्त्रीय भावना हो अर्थात् बहुमत में न्यायप्रियता और अल्पमतों में
सहनशीलता का भाव होना चाहिए।
(4) मूल अधिकार (Fundamental rights) —
मूल अधिकार संविधान द्वारा
नागरिकों को प्रदत्त ऐसे अधिकार होते हैं जिनका उपयोग राज्य के विरुद्ध किया जा
सकता है। ये मूल अधिकार दूसरे व्यक्तियों के हस्तक्षेप से भी व्यक्तियों की
स्वतन्त्रता की रक्षा करते हैं। इसी कारण वर्तमान समय में स्वतन्त्रता की रक्षा के
लिए मूल अधिकारों को आवश्यक समझा जाता है। इसी दृष्टि से भारत, अमेरिका, रूस, आयरलैण्ड, फ्रांस, आदि राज्यों के संविधानों मूल अधिकारों की व्यवस्था की गई है।
में
(5) स्वतन्त्र न्यायालय(Independent Court) -
नागरिकों की स्वतन्त्रता के
लिए यह नितान्त आवश्यक है कि न्यायालय स्वतन्त्र हों और न्यायालयों के कार्यों में
किसी प्रकार का सरकारी हस्तक्षेप न हो। इस प्रकार की निष्पक्षता और स्वतन्त्रता की
स्थिति में ही न्यायालय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। न्यायालयों के
व्यवस्थापिका या कार्यपालिका के अधीन होने पर वे शासन सत्ता के हस्तक्षेप से
नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा नहीं कर सकेंगे। इसके अतिरिक्त न्याय सर्वजन सुलभ और
शीघ्र होना चाहिए और निर्धन व्यक्ति निःशुल्क कानूनी सहायता प्राप्त कर सकें, ऐसी व्यवस्था भी होनी चाहिए। न्यायपालिका की स्वतन्त्रता के
अभाव में स्वतन्त्रता एक ढकोसला मात्र बनकर रह जाती है।
(6) सतत जागरूकता (Continuous awareness) –
स्वतन्त्रता की रक्षा का
सबसे अधिक महत्वपूर्ण उपाय नागरिकों की सतत् जागरूकता ही है। इसके लिए नागरिकों
में स्वतन्त्रता की इच्छा मात्र ही नहीं वरन् इसकी रक्षा हेतु प्रत्येक प्रकार के
त्याग करने की भावना भी होनी चाहिए। स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए यह अत्यन्त
आवश्यक है कि व्यक्ति अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहें और स्वतन्त्रता का
अतिक्रमण होने पर उसका विरोध करें। इंग्लैण्ड के नागरिकों द्वारा तो सतत जागरूकता
के कारण ही इतनी अधिक स्वतन्त्रता का उपयोग किया जाता है। कहावत भी है कि "सतत जागरूकता ही स्वतन्त्रता का
मूल्य है।”" लॉस्की के शब्दों में, “नागरिकों की महानु भावना,
न कि कानून की
शब्दावली, स्वतन्त्रता की वास्तविक सुरक्षा है।" इस सम्बन्ध में थामस जैफरसन के शब्द
महत्वपूर्ण हैं कि "कोई भी देश तब तक अपनी
स्वतन्त्रता की रक्षा नहीं कर सकता जब तक कि समय-समय पर वहां की जनता अपनी विरोधी भावना का प्रदर्शन करके अपने
शासकों को सजग न करती रहे।"
(7) शक्तियों का पृथक्करण तथा अवरोध और असन्तुलन (Separation of powers and obstruction and imbalance) -
स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए
कुछ सीमा तक शक्ति पृथक्करण तथा कुछ सीमा तक अवरोध एवं सन्तुलन के सिद्धान्त को
अपनाना आवश्यक है। शक्ति
पृथक्करण
को अपनाते हुए एक ही हाथों में शक्तियों के एकीकरण को रोका जाना चाहिए तथा
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके साथ ही जहां तक
व्यवस्थापिका और कार्यपालिका का सम्बन्ध है,
अवरोध और
सन्तुलन के सिद्धान्त को अपनाते हुए इन दोनों के बीच गहरे सम्बन्ध की व्यवस्था की
जानी चाहिए जिससे स्वतन्त्रता की रक्षा के हित में उचित प्रकार के कानूनों का
निर्माण हो सके और ठीक प्रकार से उन्हें क्रियान्वित किया जा सके।
(8) आर्थिक न्याय (Economic Justice) –
यदि हमें स्वतन्त्रता की
रक्षा करनी है तो हमारे द्वारा जीवन की वास्तविकता की उपेक्षा नहीं की जा सकती है
और यह वास्तविकता है कि बहुत अधिक सीमा तक आर्थिक समानता की स्थापना के बिना
स्वतन्त्रता का उपभोग सम्भव नहीं । जब तक व्यक्तियों के लिए भोजन, वस्त्र और आवास की व्यवस्था नहीं हो पाती, तब तक कैसे सोचा जा सकता है कि वे स्वतन्त्रता का उपभोग कर
सकेंगे। अतः आर्थिक न्याय स्वतन्त्रता की सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली गारण्टी
है। इसके बिना स्वतन्त्रता एक ही वर्ग का हित बन कर रह जाती है।
(9) स्वतन्त्र प्रेस (Free Press) —
स्वतन्त्रता की रक्षा का प्रश्न बहुत
अधिक सीमा तक स्वतन्त्र प्रेस के साथ जुड़ा हुआ है। यदि समाचार-पत्र स्वतन्त्र हैं तो उसके द्वारा प्रशासन को
मर्यादित रखने का कार्य किया जा सकता है, जनता में स्वतन्त्रता की
रक्षा के लिए आवश्यक वातावरण स्थापित करने का कार्य किया जा सकता है। स्वतन्त्रता
का सार मानवीय चेतना है और मानवीय चेतना के विकास का सर्वप्रमुख साधन स्वतन्त्र
प्रेस ही है।
(10) स्थानीय स्वशासन (Local Self Government) -
नागरिकों में स्वतन्त्रता के
प्रति प्रेम उत्पन्न करने और उन्हें स्वतन्त्रता के प्रति जागरूक बनाने की दिशा
में स्थानीय स्वशासन द्वारा भी अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है। लॉस्की के
विचारों में, “राज्य में सत्ता का जितना अधिक
विस्तृत वितरण होगा, जितना विकेन्द्रीकृत उसकी प्रकृति
होगी, में अपनी स्वतन्त्रता के प्रति उतना
ही अधिक उत्साह होगा।
read the👉👉👉स्वतन्त्रता के विविध रूप ( Different forms of freedom)
read the👉👉👉बजट क्या होता है ? (What is a budget ?)
“It is better to read one book for ten times, than to read ten books for time.”
(YOU CAN VISIT THIS WEBSITE FOR UPSC,BPSC,JPSC,STATE PCS,POLITICAL SCIENCE HONOURS,HISTORY HONOURS IMPORTANT NEWS, FAMOUS MAN,UPSC RELEATED POST AND OTHER EXAM)