Obstacles in the path of ideal citizenship आदर्श नागरिकता के मार्ग में बाधाएं

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आदर्श नागरिकता के मार्ग में बाधाएं Obstacles in the path of ideal citizenship


 

आदर्श नागरिकता के मार्ग में बाधाएं Obstacles in the path of ideal citizenship



अधिकार और कर्तव्यों का ज्ञान प्राप्त कर विविध कर्तव्यों के बीच उचित क्रम निर्धारण और उसके हैं पालन का नाम ही आदर्श नागरिकता है, लेकिन आदर्श नागरिकता के इस लक्ष्य को प्राप्त कर सकना सरल नहीं है और आदर्श नागरिकता के मार्ग में अनेक बाधाएं आती हैं जिनमें निम्नलिखित अधिक प्रमुख

(1) व्यक्तिगत स्वार्थ की प्रबलता(Predominance of personal selfishness) :—


व्यक्तिगत स्वार्थ की प्रबलता आदर्श नागरिकता के मार्ग की सबसे प्रबल बाधा कही जा सकती है। कुछ व्यक्तियों की दृष्टि में अपना स्वार्थ ही सब कुछ होता है। वे केवल अपने लिए सोचते, कार्य करते और जीवित रहते हैं और उनके द्वारा 'येन केन प्रकारेण' अपने स्वार्थ की पूर्ति को ही सब कुछ समझ लिया जाता है। इन व्यक्तियों के लिए समाज या राज्य का हित कोई महत्व नहीं रखता। इन व्यक्तियों द्वारा व्यक्तिगत स्वार्थ की दृष्टि से ही मताधिकार का प्रयोग किया जाता है, साधारण व्यापारी के रूप में कालाबाजार और सरकारी अधिकारी के रूप में भ्रष्टाचार किया जाता है तथा कुछ मुद्राओं के बदले राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का सौदा किया जा सकता है।

(2) अकर्मण्यता(indolence) -


आदर्श नागरिकता के मार्ग की एक अन्य बाधा अकर्मण्यता है। अकर्मण्य व्यक्ति किसी प्रकार का कार्य करना पसन्द नहीं करते और कर्तव्यपालन से दूर ही रहना चाहते हैं। ऐसे व्यक्ति न तो अपने मताधिकार का उचित रूप से प्रयोग करते हैं और न समाज तथा राज्य के प्रति अपने दायित्वों को समझकर उन्हें पूरा करने का प्रयत्न करते हैं। उदाहरणार्थ, देश पर बाहरी आक्रमण के समय प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होता है कि वह देश की रक्षा व्यवस्था में भाग ले, पर अकर्मण्य व्यक्ति अपने इस कर्तव्य का उचित रूप में पालन नहीं कर सकते।

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(3) अज्ञान(ignorant ) :

अज्ञानी और अशिक्षित व्यक्ति उचित और अनुचित में अन्तर नहीं कर पाते और अपने उत्तरदायित्व को पहचानने में असमर्थ रहते हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी राजनीतिक शक्ति और सार्वजनिक कर्तव्यों का सम्पादन अपने विवेक के आधार पर नहीं, वरन् दूसरे व्यक्तियों के फुसलाने में आकर कर बैठते हैं। अज्ञानी व्यक्ति भेड़ों के समान ही आचरण करते हैं जिन्हें स्वार्थी व्यक्ति कहीं भी हांक कर ले जाते हैं। साधारणतया एक शिक्षित व्यक्ति ही आदर्श नागरिक के रूप में अपना जीवन व्यतीत कर सकता है। बिना शिक्षा के न तो अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकता है और न राष्ट्र की उन्नति में सहायक हो सकता है।

एक व्यक्ति

(4) सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति अरुचि(Dislike for the public sector) :-


अनेक व्यक्ति स्वयं और अपने पारिवारिक जीवन को ही सब कुछ समझकर समाज और राज्य के कार्यों में किसी भी प्रकार की रुचि नहीं लेते हैं और सार्वजनिक जीवन के कर्तव्यों के प्रति विमुख हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति न तो मताधिकार का सही प्रयोग करते हैं और न ही सार्वजनिक समस्याओं के हल के लिए किसी प्रकार से विचार करते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति उत्पन्न इस अरुचि की ओर संकेत करते हुए अमरीकन लेखक सिज्बे (Schizbe) कहते हैं किएक व्यक्ति को मताधिकार दीजिए और वह उसे खूंटी पर टांग देगा। लाखों ऐसे निर्वाचक हैं जो मतदाता सूची में नाम नहीं लिखवाते और लाखों ऐसे नागरिक हैं जो मतदाता सूची में नाम होने पर भी मताधिकार का प्रयोग नहीं करते।" सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति यह अरुचि निर्धनता, अज्ञानता और व्यक्तिगत स्वार्थ की प्रबलता के कारण उत्पन्न होती है।

(5) गम्भीर आर्थिक विषमता या निर्धनता(Severe economic inequality or poverty): -


आदर्श नागरिकता के मार्ग में आर्थिक बाधाएं प्रबल होती हैं। जब एक व्यक्ति अपने जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं ही पूर्ण नहीं कर पाता या जब इन आवश्यकताओं को पूर्ण करने में ही उसे अपनी सम्पूर्ण शक्ति और समय का उपयोग करना होता है तो ऐसा व्यक्ति अपने सार्वजनिक कर्तव्यों के सम्बन्ध में सोच ही नहीं सकता। अनेक बार व्यक्ति अत्यधिक निर्धनता के कारण ही चोरी, हत्या, आदि समाज विरोधी कार्य करने की ओर प्रवृत्त हो जाता है। शास्त्रों में भी कहा गया है किबुभुक्षितः किम न करोति पापम्।' निर्धनता व्यक्ति के आत्मविश्वास को खत्म कर देती है तथा उसे भीरु और

भाग्यवादी बना देती है। गम्भीर आर्थिक विषमताओं के कारण उनमें वर्ग संघर्ष की भावना उत्पन्न हो जाती है और व्यक्ति अपने वर्ग के स्वार्थ हेतु समाज-विरोधी कार्य करने की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं।

(6) संकीर्ण राजनीतिक दल(Narrow political party) :- 


अनेक बार जाति, धर्म, भाषा और प्रान्तीयता के क्षुद्र भेदों के आधार पर राजनीतिक दलों का निर्माण हो जाता है और ये राजनीतिक दल साम्प्रदायिकता, जातीयता और वर्ग विद्वेष की राष्ट्र-विरोधी भावनाओं को प्रबलता प्रदान करते हैं। अनेक बार राजनीतिक दलों के द्वारा किसी भी प्रकार से शासन शक्ति प्राप्त कर लेना ही अपना एकमात्र उद्देश्य निश्चित कर लिया जाता है और वे सभी भ्रष्ट उपायों को अपना लेते हैं। ऐसे संकीर्ण और असंगठित राजनीतिक दल आदर्श नागरिकता के मार्ग में बाधक ही होते हैं।

(7) संकुचित समुदायों को अधिक महत्व देने की प्रवृत्ति(Tendency to give more importance to narrow communities ):- 


विभिन्न समुदायों के प्रति कर्तव्यों के उचित क्रम निर्धारण का नाम ही आदर्श नागरिकता है, लेकिन अनेक बार व्यक्ति अपने धार्मिक, आर्थिक या राजनीतिक समुदायों को इतना अधिक महत्व देते हैं कि इन समुदायों के वशीभूत होकर वे समाज एवं राज्य के हितों की अवहेलना करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। मध्ययुग में व्यक्तियों द्वारा चर्च के प्रति अन्ध-श्रद्धा की स्थिति को अपनाया गया था और वर्तमान समय में इस प्रकार की अन्ध-श्रद्धा अनेक बार आर्थिक और राजनीतिक समुदायों के प्रति देखी जा सकती है। संकुचित हितों के प्रति यह अत्यधिक भक्ति राष्ट्रीय हितों के सम्पादन और आदर्श नागरिकता के मार्ग में बाधक होती है।

(8) सामाजिक कुप्रथाएं (Social evils): 


आदर्श नागरिकता के मार्ग में कुछ सामाजिक बाधाएं भी होती हैं। अनेक बार समाज में वंश, जाति तथा धर्म के आधार पर भेदभाव किया जाता है और इस भेदभाव के कारण समाज का एक बड़ा वर्ग अपना विकास करने से वंचित रह जाता है। किसी समाज में पुराने समय से जो रूढ़ियां और प्रथाएं चली आ रही हैं, उनका पालन करना उसी सीमा तक उपयोगी हो सकता है, जिस सीमा तक वे समाज की बदलती हुई परिस्थितियों में हानिकारक न हों। भारतीय समाज में अस्पृश्यता, जाति-पांति का भेद, बाल-विवाह एवं दहेज प्रथा इसी प्रकार की हानिकारक प्रथाएं हैं।(Untouchability, caste discrimination, child marriage and dowry system are such harmful practices in Indian society.)  पुराने समय के अभ्यासों के कारण ही भारतीय व्यक्ति भाग्यवादी और सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति उदासीन हैं। प्राचीनकाल से चली आ रही ये हानिकारक प्रथाएं भी आदर्श नागरिकता के मार्ग में बाधक होती हैं।

(9) शासन की भ्रष्टता(Corruption of governance):-


एक राज्य के अन्तर्गत प्रचलित शासन-व्यवस्था का देश के नागरिकों पर आवश्यक रूप से प्रभाव पड़ता है। यदि शासन का स्वरूप ही भ्रष्ट हो, सरकारी अधिकारी कर्तव्यपालन के प्रति उदासीन हों और अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति में ही लगे रहते हों, तो सामूहिक रूप से नागरिकों के चरित्र पर इसका प्रभाव पड़ता है और वे आदर्श नागरिकों के रूप में अपना जीवन व्यतीत नहीं कर पाते।

 (10) उग्र राष्ट्रीयता और साम्राज्यवाद की संकीर्ण मनोवृत्तियां(Extreme nationalism and narrow attitudes of imperialism): -


डॉक्टर बेनीप्रसाद ने कहा है कि "आदर्श नागरिक द्वारा अपने देश के प्रति भक्ति का सामंजस्य मानवता के प्रति भक्ति के साथ किया जाना चाहिए।" लेकिन उग्र राष्ट्रीयता और साम्राज्यवाद की संकुचित मनोवृत्ति व्यक्ति को यह सोचने मनोवृत्ति व्यक्ति को यह सोचने के लिए प्रेरित करती है कि उसका राज्य ही सब कुछ है और उसके द्वारा अपने राज्य की प्रगति है और उसके द्वारा अपने राज्य की प्रगति के लिए अन्य राज्यों के हितों का बलिदान किया जा सकता है। उग्र राष्ट्रीयता का यह विचार आदर्श नागरिकता के अन्तर्राष्ट्रीय संदेश 'जीओ और जीने दो' या 'विश्वबन्धुत्व' की भावना के विरुद्ध है और राज्यों को मानवता के विनाश की ओर प्रवृत्त करता है। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध इसी प्रवृत्ति के परिणाम थे।

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April 26, 2025