आदर्श नागरिकता की बाधाओं का निवारण
Removing the barriers to ideal citizenship
नागरिकशास्त्र एक विज्ञान ही नहीं, एक कला भी है। कला होने के नाते नागरिकशास्त्र नागरिकों के व्यवहार के यथार्थ वर्णन तक ही अपने आपको सीमित नहीं रखता, वरन इस बात पर भी विचार करता है कि उन्हें आदर्श नागरिक कैसे बनाया जा सकता है। आदर्श नागरिकता के मार्ग की बाधाओं को दूर करने के लिए नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन के अन्तर्गत विविध क्षेत्रों में प्रयत्न किया जाना आवश्यक है और इस प्रकार के प्रयासों के अन्तर्गत प्रमुख रूप से निम्नलिखित कार्य किये जाने चाहिए :
- (1) नैतिकता का उत्थान ( Rise of morality ) :-
- (2) स्वस्थ राजनीतिक दलों की स्थापना(The state From this
And the concept should not be based on the ideal):- - (4) शिक्षा का प्रचार (Promotion of Education): -
- (5) गम्भीर आर्थिक विषमताओं का अन्त और सभी व्यक्तियों के लिए आर्थिक न्यूनतम (End of serious economic inequalities and economic minimum for all persons): —
- (6) स्वतन्त्र और शक्तिशाली प्रेस (Free and powerful press ) :—
- (7) सामाजिक कुरीतियों का निवारण (Prevention of social evils ):-
- (8) सुव्यवस्थित और जनहितकारी शासन (Orderly and pro-people governance): -
- (9) विश्वबन्धुत्व की भावना (Feeling of universal brotherhood ) :-
(1) नैतिकता का उत्थान ( Rise of morality ) :-
आदर्श नागरिकता रूपी भवन का निर्माण नैतिकता रूपी नींव के आधार पर ही किया जा सकता है। अतः नैतिकता के उत्थान के लिए सभी सम्भव प्रयत्न किये जाने चाहिए। कुटुम्ब और शिक्षण संस्थाओं द्वारा इस सम्बन्ध में विशेष कार्य किया जा सकता है क्योंकि व्यक्ति के जीवन की आधारशिला रखने का कार्य इन्हीं संस्थाओं द्वारा किया जाता है। यदि माताएं शिक्षित हो, कुटुम्ब में प्रेम, और साधारण रूप से आर्थिक सम्पन्नता का वातावरण हो, तो ठीक प्रकार के संस्कार सहिष्णुता, अनुशासन के आधार पर नैतिक जीवन की नींव रखी जा सकती है। इसी प्रकार शिक्षण संस्थाओं द्वारा भी विषयों की सामान्य शिक्षा प्रदान करने तक ही अपने आपको सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, वरन् विद्यार्थियों को नैतिक जीवन का मूल्य और महत्व भी समझाया जाना चाहिए। यदि इस सम्बन्ध में नेतृत्व करने वाले व्यक्ति आदर्श उपस्थित करें, तो नैतिकता के उत्थान का महान् कार्य बहुत अधिक सरल हो जायेगा ।
(2) स्वस्थ राजनीतिक दलों की स्थापना(The state From this
And the concept should not be based on the ideal):-
आदर्श नागरिकता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों को आर्थिक सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं का ज्ञान हो और वे इन समस्याओं को हल करने के व्यावहारिक उपायों से परिचित हों। ऐसा होने पर ही नागरिक अपने मताधिकार का उचित प्रयोग कर सार्वजनिक क्षेत्र में ठीक प्रकार से कार्य कर सकते हैं। नागरिक को सार्वजनिक क्षेत्र के सम्बन्ध में इस प्रकार का सम्पूर्ण ज्ञान राजनीतिक दलों के द्वारा ही प्रदान किया जा सकता है, लेकिन राजनीतिक दल यह कार्य उसी समय भली-भांति कर सकते हैं जबकि वे आर्थिक और राजनीतिक प्रश्नों पर आधारित हों और भली-भांति संगठित हों। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक राजनीतिक दल में राज्य के हितों को दलीय हितों के ऊपर प्राथमिकता देने की प्रवृत्ति होनी चाहिए ।
(3) स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं का विकास
आदर्श नागरिक में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति रुचि होना नितान्त आवश्यक है और इस
प्रकार की रुचि उत्पन्न करने में स्थानीय स्वशासन संस्थाओं द्वारा अत्यन्त
महत्वपूर्ण कार्य किया जाता है। स्थानीय स्वशासन स्थान विशेष का प्रबन्ध नागरिकों
के हाथ में देकर सीमित क्षेत्र में अपने प्रत्यक्ष कार्य और अनुभव के आधार पर
उन्हें महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रश्नों पर ठीक प्रकार से विचार करने की योग्यता
प्रदान करता है।
(4) शिक्षा का प्रचार (Promotion of Education): -
शिक्षा, जिसे महात्मा गांधी ने 'आत्मा की नागरिकता का दूसरा प्रमुख आधार है। शिक्षा के
अधिकाधिक प्रचार से ही नागरिकों को अधिकार एवं कर्तव्यों का ज्ञान प्राप्त हो सकता है, स्वतन्त्र रूप से विचार की
प्रवृत्ति उत्पन्न होती है और व्यक्ति का मानसिक क्षितिज विस्तृत होता है, लेकिन शिक्षा के द्वारा उपर्युक्त प्रकार के कार्य किये जा
सकें इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षा मात्र किताबी ही नहीं होनी चाहिए, वरन् मानवीय मूल्यों पर आधारित सच्ची शिक्षा-व्यवस्था का प्रबन्ध किया जाना चाहिए।
(5) गम्भीर आर्थिक विषमताओं का अन्त और सभी व्यक्तियों के लिए आर्थिक न्यूनतम (End of serious economic inequalities and economic minimum for all persons): —
व्यक्तियों की अनिवार्य आवश्यकताओं के सन्तुष्ट हो जाने पर ही वे सार्वजनिक कर्तव्यों का सम्पादन कर सकते हैं। अतः ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि सभी व्यक्तियों को अनिवार्य रूप से आर्थिक न्यूनतम की प्राप्ति हो जाय । आर्थिक न्यूनतम का तात्पर्य यह है कि सभी व्यक्तियों की भोजन, वस्त्र, निवास, शिक्षा और स्वास्थ्य की आवश्यकताएं अनिवार्य रूप से पूरी की जानी चाहिए। इसके साथ ही गम्भीर भेदभावों का अन्त कर अधिक-से-अधिक सम्भव सीमा तक आर्थिक समानता की स्थापना की जानी चाहिए। आज की परिस्थितियों को तो यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि आर्थिक समानता की स्थापना के बिना आदर्श नागरिकता का निर्माण सम्भव नहीं है।
(6) स्वतन्त्र और शक्तिशाली प्रेस (Free and powerful press ) :—
समय-समय पर समस्याओं और घटनाओं के सम्बन्ध में सही-सही जानकारी प्राप्त न हो पाना भी आदर्श नागरिकता के कर्तव्यों के सम्पादन में बाधा सिद्ध होती है। अतः ऐसा स्वस्थ और शक्तिशाली प्रेस होना चाहिए, जो व्यक्तियों को सही सूचना प्रदान कर सके और इस प्रकार उन्हें स्वतन्त्र रूप से विचार करने के लिए प्रेरित कर सके।
(7) सामाजिक कुरीतियों का निवारण (Prevention of social evils ):-
वर्तमान समय की परिस्थितियों में अव्यावहारिक सामाजिक प्रथाओं
को अपनाये रहने से सामाजिक विकास की गति अवरुद्ध हो जाती है। अतः परिवर्तित
आवश्यकताओं के अनुसार सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन कर लेना नितान्त आवश्यक है।
उदाहरणार्थ, भारत में आदर्श नागरिकता के निर्माण
के लिए जाति-पांति के भेद और अस्पृश्यता
के विचार का त्याग करना जरूरी है। प्राचीन प्रथाओं और रूढ़ियों के सम्बन्ध में
संस्कृत भाषा के इस कवि के विचारानुसार ही आचरण किया जाना
चाहिए, जो कहते हैं कि “जो
बातें प्राचीनकाल से चली आ रही हैं वे अवश्य ही उपादेय हों, यह जरूरी नहीं है। साथ ही कोई बात केवल इसीलिए भी अच्छी नहीं
मानी जा सकती, क्योंकि वह नयी है। जिस प्रकार हंस
दूध और पानी में भेद कर दूध को ग्रहण करता है,
वैसे ही हमें
बुद्धि द्वारा उपयोगी बातों को ग्रहण करना चाहिए।"
(8) सुव्यवस्थित और जनहितकारी शासन (Orderly and pro-people governance): -
व्यवस्था आदर्श नागरिकता के निर्माण की दिशा में सुव्यवस्थित
और जनहितकारी शासन का महत्व भी कम नहीं है। शासन के संचालन का उद्देश्य किसी वर्ग
विशेष का कल्याण न होकर सम्पूर्ण समाज का कल्याण होना चाहिए। व्यक्तियों की
स्वतन्त्रता को क्षति न पहुंचाते हुए राज्य के द्वारा अपने कार्यों में अधिकाधिक
वृद्धि की जानी चाहिए जिससे सामान्य जनता अपनी उन्नति कर सके। इसके साथ ही शासन
कार्य से विशेष रूप से सम्बन्धित व्यक्तियों का चरित्र भी अनुकरणीय होना चाहिए, जिससे सामान्य जनता उनसे प्रेरणा प्राप्त कर सके।
(9) विश्वबन्धुत्व की भावना (Feeling of universal brotherhood ) :-
आदर्श नागरिकता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उग्र
राष्ट्रवाद, पूंजीवाद एवं साम्राज्यवाद के विचार
को त्याग कर विश्वबन्धुत्व की भावना को अपनाना भी नितान्त आवश्यक है। आदर्श
नागरिकता का विचार 'वसुधैव कुटुम्बकम्' अर्थात 'सम्पूर्ण विश्व ही मेरा
कुटुम्ब है' की धारणा पर आधारित होता है। अतः
आदर्श नागरिक द्वारा अपने देश के कल्याण का इस प्रकार से प्रयत्न किया जाना चाहिए
कि विश्व के अन्य देशों की प्रगति में बाधा न पहुंचे। वर्तमान समय में सहयोग एवं
सह अस्तित्व की धारणा के आधार पर ही एक देश अपनी उन्नति कर सकता है और विश्व के
अन्य देशों की उन्नति में योग दे सकता है।
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