शक्ति के स्रोत(Sources of power)

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 शक्ति के स्रोत(Sources of power)

शक्ति के स्रोत(Sources of power)
शक्ति का अर्थ स्पष्टता के साथ समझने के लिए शक्ति के स्रोतों का अध्ययन किया जा सकता है।

(Sources of power can be studied to understand the meaning of power with clarity. )

 शक्ति अनेक स्रोतों से उत्पन्न होकर विभिन्न रूपों में अपने आपको प्रकट करती है। नैपोलियन, हिटलर, वस्तुतः लेनिन और गाँधी ये सभी शक्तिशाली थे, लेकिन इनकी शक्ति के स्रोतों में भेद था। शक्ति के स्रोतों की कोई पूर्ण सूची तो देना सम्भव नहीं है, क्योंकि विचारकों में इस सम्बन्ध में बहुत अधिक मतभेद है फिर भी शक्ति के कुछ प्रमुख स्रोतों का उल्लेख निम्न रूपों में किया जा सकता है।

(1) ज्ञान (Knowledge)-शक्ति का प्रथम स्रोत ज्ञान है। ज्ञान अपने साधारण अर्थ में व्यक्ति को अपने लक्ष्यों को पुनः प्रबन्धित करने और मिलाने की योग्यता प्रदान करता है। ज्ञान द्वारा व्यक्ति की अन्य विशेषताओं को इस प्रकार संचालित किया जाता है कि वे शक्ति का साधन बन सकें। व्यक्ति के नेतृत्व का गुण, उसकी इच्छा-शक्ति, उसकी सहन-शक्ति, अपने आप को अभिव्यक्त करने की शक्ति, आदि विभिन्न तत्व शक्ति के महत्वपूर्ण पहलू हैं। इन तत्वों में से किसी भी एक की कमी शक्ति के समस्त रूप को अकार्यकुशल बना सकती है और उसे पूरी तरह नष्ट कर सकती है।

(2) प्राप्तियाँ (Possessions)—ज्ञान शक्ति का आन्तरिक स्रोत है। इसके अतिरिक्त शक्ति का निर्धारण करने वाले बाहरी तत्व भी होते हैं, जिनमें प्राप्तियाँ सर्वाधिक प्रमुख हैं। साधारण बोलचाल के अन्तर्गत इसे ही आर्थिक शक्ति का नाम दिया जा सकता है। प्राप्तियों के अन्तर्गत भौतिक सामग्री, स्वामित्व एवं सामाजिक सामग्री की शक्ति, एक व्यक्ति को समाज एक व्यक्ति को समाज में प्राप्त स्थिति और स्तर, आदि को सम्मिलित किया जा सकता है। प्राप्तियाँ या सम्पत्ति शक्ति का एक स्रोत अवश्य है, लेकिन न तो यह एकमात्र स्रोत है और न ही निश्चित रूप से प्रभाव डालने वाला स्रोत। बिना सम्पत्ति के भी एक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के कार्यों को प्रभावित कर सकता है और सम्पत्ति के होने पर भी आवश्यक नहीं है कि वह दूसरों के कार्यों को प्रभावित कर सकेगा।

(3) संगठन(Organization )-संगठन अपने आप में शक्ति का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। कहावत भी है कि 'संगठन ही शक्ति है' (Unity is strength) । विभिन्न प्रतिद्वन्द्वितापूर्ण इकाइयाँ आपस में मिलकर संघ बना लेती हैं, तो उनकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। आधुनिक युग के मजदूर संघ तथा व्यापारिक संघ इसके उदाहरण हैं। शक्ति की दृष्टि से सबसे बड़ा संघ स्पष्टतया राज्य ही है और इसका एक प्रमुख कारण राज्य का सर्वाधिक संगठित स्वरूप ही है।

(4) आकार(form)-अनेक बार आकार को शक्ति का परिचायक मान लिया जाता है और यह सोचा जाता है कि एक संगठन का जितना बड़ा आकार होगा, उसके द्वारा उतनी ही अधिक शक्ति का परिचय दिया जा सकेगा। आकार के साथ यदि संगठन का मेल हो, तो ऐसा होता भी है, लेकिन सभी परिस्थितियों में ऐसा नहीं होता। अनेक बार ऐसा भी होता है कि उसका बड़ा आकार उसे उलझा दे, उसे असन्तुलित बना दे और उसे परिस्थितियों के अनुकूल न रहने दे। इसी कारण अनेक बार कुछ राजनीतिक दलों द्वारा अपने आकार को घटाने के लिए 'शुद्धि आन्दोलनों' (Purges) का आश्रय लिया जाता है।

शक्ति के स्रोत एवं आधार के रूप में विश्वास का भी पर्याप्त महत्व है। तलवार की शक्ति भी अन्तिम रूप से विश्वास पर ही आधारित होती है। शक्ति का एक अन्य स्रोत सत्ता होती है। शक्ति की महानता इस बात से निर्धारित की जाती है कि वह मानव मस्तिष्क पर प्रभाव डालने में कितनी सक्षम है। प्रो. मैकाइवर ने शक्ति के इन विभिन्न तत्वों का वर्णन करने के बाद कहा है कि “शक्ति की कार्य-कुशलता उन विभिन्न परिस्थितियों के द्वारा बढ़ती या कम होती रहती है, जिनके अधीन उसे कार्य करना है।

 

 

शक्ति के प्रकार(Types of Power)

 

शक्ति नानारूपिणी होती है तथा इसके विभिन्न प्रकार होते हैं।(Power is non-form and has different types.) शक्ति के प्रकार के सम्बन्ध में विद्वानों द्वारा भी अलग-अलग विचार व्यक्त किये गये हैं। गोल्डहेमर एवं एडवर्ड शिल्स के अनुसार, "एक व्यक्ति की शक्ति उतनी कही जा सकती है, जितनी मात्रा में वह अपनी इच्छा के अनुसार दूसरे के व्यवहार को परिवर्तित कर सके।" व्यवहार में परिवर्तन की इस धारणा के अनुसार शक्ति तीन प्रकार की होती है : बल, प्रभुत्व(: Force, Dominance ) और चातुर्य (Manipulation)। शक्तिवान व्यक्ति बल का प्रयोग करता हुआ उस समय कहा जाता है, जिस समय वह अधीनस्थ व्यक्तियों के व्यवहार को भौतिक शक्ति के माध्यम से प्रभावित करता है। जब शक्तिवान व्यक्ति अपनी इच्छा को प्रकट कर दूसरों के व्यवहार को प्रभावित करता है, तो वह प्रभुत्व कहलायेगा। 'प्रभुत्व' आदेश या आग्रह के रूप में हो सकता है। चातुर्य दूसरों के व्यवहार को प्रभावित करने का तरीका है जिसमें प्रभावित होने वाले व्यक्तियों को स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया जाता कि शक्तिवान व्यक्ति आखिर उनसे क्या चाहता है। इस अन्तिम प्रक्रिया में विभिन्न तरीकों और प्रतीकों (symbols) का प्रयोग करते हुए प्रचार की प्रणाली को अपनाया जाता है।

मैक्स वेबर(Max Weber ) केवल औचित्यपूर्ण शक्ति का अध्ययन करता है और उसे वह सत्ता कहता है। जिसे व्यक्तियों या अधीनस्थों द्वारा स्वीकार किया जाता है या अधिकारपूर्वक माना जाता है, उसे औचित्यपूर्ण सत्ता कहते हैं। जो शक्ति औचित्यपूर्ण नहीं है उसे वेबर दमन (coercion) कहता है। वेबर ने औचित्यपूर्ण शक्ति के तीन प्रमुख रूप बताये हैं : (i) कानूनी या वैधानिक,(Legal or statutory) (ii) परम्परागत,(Traditionally), (iii) करिश्मावादी (charismatic)। जब अधीनस्थ लोग शक्तिवान व्यक्तियों द्वारा निर्मित कानूनों, निर्देशों एवं डिक्रियों (Decrees) की वैधानिकता में विश्वास करते हैं, तो यह औचित्यपूर्ण शक्ति वैधानिक कहलाती है। जब शक्तिवान द्वारा प्रसारित आदेशों को परम्परा के आधार पर पवित्र माना जाये अथवा परम्परा के कारण ही वह शक्ति का प्रयोग करें, तो इसे औचित्यपूर्ण शक्ति का परम्परागत रूप कहा जायेगा। तीसरे, जब औचित्य की मान्यता का आधार शक्तिवान के व्यक्तिगत गुणों के प्रति भक्ति होती है, तो वह करिश्मावादी औचित्यपूर्ण शक्ति कही जाती है। करिश्मावादी औचित्यपूर्ण शक्ति के अन्तर्गत अनुयायियों को अपने नेता की विशेषताएँ प्रायः अद्वितीय प्रतीत होती हैं और उसके सम्मुख वे पूर्ण समर्पण कर देते हैं। पं. नेहरू को अपने प्रधानमंत्री काल के अधिकांश वर्षों में और 1971-72 के वर्षों में श्रीमती गाँधी को भारतीय जनता पर करिश्मावादी शक्ति ही प्राप्त थी।

बायसेटेड ने भी शक्ति के अनेक आधारों पर कई प्रकार बताये हैं

(Bassett has also described many types on many grounds of power )

 : (i) दृश्यता के आधार(Visibility base )पर शक्ति अदृश्य या प्रकट हो सकती है। शक्ति के अदृश्य रूप को प्रच्छन्न (latent) शक्ति कहा जायेगा तथा उसका प्रकट रूप अभिव्यक्त होने पर उसे सत्ता, बल, आदि कहा जायेगा। (ii) दमन की दृष्टि से शक्ति दमनात्मक या अदमनात्मक हो सकती है, (iii) औपचारिकता की दृष्टि से वह औपचारिक तथा अनौपचारिक हो सकती है, (iv) शक्ति प्रयोग की दृष्टि से यदि शक्ति का प्रयोग स्वयं धारक द्वारा किया जाय तो उसे प्रत्यक्ष और यदि अधीनस्थों द्वारा प्रयुक्त हो, तो उसे अप्रत्यक्ष कहा जायेगा।

(1) शक्ति प्रवाह या दिशा की दृष्टि(Vision of power flow or direction) से वह एकपक्षीय, द्विपक्षीय या बहुपक्षीय हो सकती है।

(2) केन्द्रीकरण के दृष्टिकोण से वह केन्द्रित, विकेन्द्रित अथवा विस्तृत हो सकती है।(From the point of view of centralization, it can be centralized, decentralized or expanded.)  केन्द्रित में केन्द्रीय सत्ता का नियन्त्रण होता है, विकेन्द्रित होने पर शक्तियाँ अनेक अधीनस्थ निकायों को स्वायत्त या अर्द्ध-स्वायत्त आधारों पर प्रदान की जाती हैं। विस्तृत शक्ति का स्वरूप बिखरा हुआ, अस्पष्ट एवं प्रसुत होता है जैसे जनशक्ति।

(3) क्षेत्रीयता के आधार पर वह अन्तर्राष्ट्रीय या भूखण्ड विशेष से सम्बन्धित होती है।

(4) शक्ति की मात्रा एवं प्रभाव की दृष्टि से विभिन्न राज्यों को महान, मध्यम तथा निम्न शक्तियाँ कहा

जाता है।

इस प्रकार शक्ति के अनेक स्वरूप हो सकते हैं।

शक्ति का प्रयोग एवं सीमाएँ

शक्ति का प्रयोग विभिन्न प्रकार की शास्तियों (sanctions) या साधनों के आधार पर किया जाता है; जैसे पुरस्कार, दण्ड, आर्थिक लाभ देना या रोकना, आदि। इन साधनों की मात्रा एवं प्रकार देश, काल तथा संस्कृति विशेष के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। शक्ति का प्रयोग करते हुए पिटाई, जेल, जुर्माना,

अपदस्थीकरण या अपमान इसमें से किसी भी साधन को अपनाया जा सकता है। इसी प्रकार संस्था पर शक्ति का प्रयोग करते हुए धमकी या प्रलोभन में से किसी को भी आवश्यकतानुसार चुना जा सकता है। उदाहरण के लिए, अमरीका का राष्ट्रपति वहाँ की कॉंग्रेस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए या तो काँग्रेस सदस्यों एवं उनके अनुयायियों को पदों का प्रलोभन देता है अथवा विशेष सम्मेलन बुलाने या मतदाताओं से सीधे अपील करने की बात कहता है अथवा विधेयक विशेष पर निषेधाधिकार के प्रयोग की धमकी देता है। इनमें से एक साधन के असफल रहने पर दूसरे साधन को अपनाया जा सकता है। सामान्यतया शक्ति प्रयोग में सफलता प्राप्त होती है, लेकिन कभी-कभी इसमें असफल भी रहना होता है।

किन्तु शक्ति प्रयोग स्वच्छन्द नहीं होता और उसके ऊपर अनेक प्रतिबन्ध तथा सीमाएँ, आदि होती हैं। ये सीमाएँ अनेक बातों से सम्बन्ध रखती हैं जैसे इतिहास और परम्पराएँ, सहमति या स्वीकृति प्राप्त करने की आवश्यकता के तरीके, राजनीतिक विकास का प्रभाव, धर्म, नैतिकता एवं समूहों का दबाव, आदि। शक्ति की सीमाएँ प्रयोगकर्ता के लक्ष्य एवं उद्देश्यों, उसकी क्षमता, पारस्परिक सम्बन्धों, प्रतियोगिता, कार्य-पद्धतियों और वातावरण सम्बन्धी कारणों, आदि से भी उत्पन्न होती हैं।

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It is better to read one book for ten times, than to read ten books for time.”

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