Basis of power ( सत्ता के आधार )

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   Basis of power

  सत्ता के आधार 

Basis of power    सत्ता के आधार
सत्ता एक ऐसा स्वतन्त्र परिवर्त्य है जिसका शक्ति, प्रभाव, आदि से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। सत्ता के अनेक स्रोत एवं आधार होते हैं। सत्ता का मूल आधार तो औचित्यपूर्णता ही है क्योंकि सत्ता के आदेशों का पालन सत्ताधारी और अधीनस्थ के बीच मूल्यों की समानता के आधार पर किया जाता है। इसके अतिरिक्त विश्वास, विचारों की एकरूपता, विभिन्न दण्ड विधान, अधीनस्थों की प्रकृति, पर्यावरणात्मक दबाव, आदि भी सत्ता के आधार रूप में कार्य करते हैं। पर्यावरणात्मक दबाव आन्तरिक और बाहरी दोनों ही रूपों में होते हैं। राज व्यवस्थाओं में आन्तरिक दबाव आन्तरिक राजनीतिक संरचनाओं जैसे, संविधान, प्रशासनिक संगठन, पदानुक्रम में आयोजित विभिन्न पदों तथा इन पदाधिकारियों के अधिकार तथा शक्तियों के रूप में होते हैं। इसके अतिरिक्त सत्ताधारी की कार्यकुशलता और वैयक्तिक गुण भी सत्ता के आधार रूप में कार्य करते हैं। अपने राज्य का भली-भाँति अस्तित्व बनाये रखने की इच्छा, बाहरी दबाव के रूप में सत्ता के आधार का कार्य करती है।

सत्ता को स्वीकार करने के लिए अधीनस्थ के पास एक 'तटस्थता का क्षेत्र' (Zone of indifference) होता है जिसके अन्तर्गत आने वाले मामलों में वह सत्ता के आदेशों को आँख मींचकर स्वीकार करता है। स्वीकृति का यह क्षेत्र सीमित होता है तथा घटता-बढ़ता रहता है। सामान्यतया अधीनस्थ की यह प्रवृत्ति रहती है कि वह प्रत्येक विषय में प्राधिकारी के आदेशों का पालन करे, क्योंकि ऐसा करने में वह उत्तरदायित्व से बच जाता है। अधीनस्थ की दृष्टि से आवश्यक है कि आदेश समस्त संगठन के लिए हितकारी हों तथा उसके व्यक्तिगत हित में भी हों। वह पुरस्कार, प्रशंसा, लालच या दण्ड के भय से भी आदेशों का पालन कर सकता है। जब सत्ताधारी में कोरी सत्ता के अलावा, नेतृत्व तथा अन्य व्यक्तिगत गुण हों, तब अधीनस्थ के लिए आदेशों का पालन स्वाभाविक हो जाता है। सत्ता की कुशलता उस समय सर्वाधिक हो जाती है जबकि सत्ताधारी और अधीनस्थों के बीच मूल्यों की समानता स्थापित हो जाती है। सत्ता की स्वीकृति का यह क्षेत्र असीमित नहीं होता और न ही अपरिवर्तित रहता है। सत्ताधारी की स्थिति, सत्ताधारी और अधीनस्थ के बीच सम्बन्धों की स्थिति और अन्य तत्वों के आधार पर इसमें कमी और वृद्धि होती रहती है।

सत्ता पालन के आधार (Grounds of power)

सत्ता के प्रसंग में एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि व्यक्ति सत्ता का पालन क्यों करते हैं। सत्ता की प्रकृति के सम्बन्ध में प्रमुख रूप से प्रतिपादित दो सिद्धान्तों : औपचारिक सत्ता सिद्धान्त और स्वीकृति सिद्धान्त, में इस प्रश्न की व्याख्या की गई है। इसके अतिरिक्त मैक्स बेबर, मेरी पार्कर फॉलेट और चेस्टर बर्नार्ड के द्वारा भी इस सम्बन्ध में विचार व्यक्त किए गये हैं, लेकिन इस सम्बन्ध में साइमन के विचार अधिक महत्वपूर्ण हैं।

साइमन ने सत्ता पालन के प्रमुख रूप से चार आधार बतलाए हैं, जो इस प्रकार हैं :(Simon has given four main grounds for the exercise of power, which are as follows :)

1. विश्वास (faith belief) विश्वास, सत्ता के पालन का सम्भवतया सबसे प्रमुख आधार है। अधीनस्थ सत्ताधारी के प्रति विश्वास के कारण उसके आदेशों का पालन करते हैं। इसी कारण सत्ताधारी के प्रति अधीनस्थों का विश्वास जितना गहरा होता है सत्ताधारी के आदेशों का पालन उतना ही सरल और स्वाभाविक हो जाता है, लेकिन जब विश्वास की स्थिति को आघात पहुंचता है तो सत्ताधारी के लिए आदेशों का पालन करवाना उतना ही कठिन हो जाता है और आदेशों का पालन करवाने के लिए दबाव की शक्ति का सहारा लेना होता है।

2. एकरूपता (uniformity)  - यह मानव स्वभाव है कि वह उन लोगों के परामर्श, सुझाव और आदेशों को अधिक महत्व देता है जो उसके साथ विचारों और आदर्शों की एकरूपता रखते हैं। सत्ता पालन के प्रसंग में एकरूपता के महत्व को स्वीकार करते हुए ही राज व्यवस्थाएं उदारवाद, साम्यवाद या फासीवाद में से अपने अनुकूल किसी विचारधारा का प्रतिपादन करती हैं तथा राजनीतिक नेतृत्व अधीनस्थों एवं सामान्य नागरिकों को अपने अनुकूल ढालने का प्रयत्न करता है।

3. दबाव (pressure)अनेक बार दबाव और बाध्यकारी शक्ति सत्ता पालन के आधार के रूप में कार्य करते हैं। प्रत्येक संगठन और प्रत्येक राज व्यवस्था में अल्प संख्या में ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन पर विश्वास या एकरूपता का प्रभाव कम पड़ता है और जो दमन और दबाव की भाषा ही समझते हैं। सत्ताधारी का प्रयत्न यह होना चाहिए कि सत्ता पालन के प्रमुख आधार के रूप में दबाव को अपनाने की आवश्यकता न पड़े। इस दृष्टि से आवश्यक है कि सत्ताधारी के आदेशों का औचित्य स्वतः स्पष्ट हो।

4. वैधानिकता (Legality)  प्रत्येक संगठन में एक पद सोपानात्मक व्यवस्था होती है और इस पद सोपान में सत्ताधारी को उच्च स्थिति प्राप्त होने के कारण सत्ता और सत्ताधारी के आदेशों को वैधता प्राप्त हो जाती है। साइमन के मत में, 'सत्ता को इस मान्यता के कारण स्वीकार किया जाता है कि उच्च प्राधिकारी के आदेशों का पालन किया जाना चाहिए।' वैधानिकता का महत्व इस बात से स्पष्ट है कि जब कभी सत्ता के प्रसंग में 'वैधता का संकट' खड़ा हो जाता है, तब सत्ता की प्रभावशीलता को गहरा आघात पहुंचता है।

वस्तुतः ये सभी तत्व सत्ता पालन के मिले-जुले आधार के रूप में कार्य करते हैं। कभी विश्वास प्रमुख आधार बन जाता है और कभी दबाव। व्यवस्था की श्रेष्ठता का प्रतीक और प्रमाण यह होता है कि विश्वास सत्ता पालन का प्रमुख आधार हो और दबाव इस प्रसंग में गौण तत्व बना रहे।

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