Ideal Citizenship आदर्श नागरिकता

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Ideal Citizenship आदर्श नागरिकता


                                                       
Ideal Citizenship  आदर्श नागरिकता

अरस्तू (aristotle) ने कहा है कि "श्रेष्ठ नागरिक ही श्रेष्ठ राज्य का निर्माण कर सकते हैं, अतः राज्य के नागरिक आदर्श होने चाहिए।" (Only the best citizens can build a better state, so the citizens of the state should be role models.)  वस्तुतः आदर्श नागरिकता ही राज्य के विकास का आधार बन सकती है। आदर्श नागरिकता व्यक्ति की उस स्थिति का नाम है जिसमें उनके द्वारा आदर्श नागरिकों के रूप में जीवन व्यतीत किया जाता है। आदर्श नागरिक को अनेक बार आदर्श या उत्तम पुरुष का पर्यायवाची माना जाता है, लेकिन इन दोनों में कुछ अन्तर है। जो मनुष्य सदा सत्य बोलें, किसी को दुख न दें, मृदुभाषी हों, धर्म और सदाचार के नियमों का पालन करते हों, उन्हें हम आदर्श मनुष्य कहते हैं; लेकिन एक आदर्श नागरिक के लिए इतना ही पर्याप्त नहीं है, इनके अतिरिक्त उसमें सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति रुचि होनी चाहिए। उसके द्वारा अपने अधिकारों का ठीक प्रकार से उपभोग और कर्तव्यों का ठीक प्रकार से पालन किया जाना चाहिए।

लॉर्ड ब्राइस(Lord Bryce )

 के अनुसार एक आदर्श नागरिक में बुद्धि, आत्मसंयम और अन्तःकरण ये तीन गुण आवश्यक हैं, अर्थात् आदर्श नागरिक वह है जो अपनी बुद्धि और शक्तियों का उपयोग राज्य के लाभ हेतु करता है। अपने के अनुसार, "एक छोटे-छोटे हित और स्वार्थ को त्यागने की भावना उसमें प्रमुख रूप से होनी चाहिए। ह्वाइट आदर्श नागरिक में व्यावहारिक बुद्धि, ज्ञान और भक्ति ये तीन गुण आवश्यक हैं।प्रसिद्ध विचारक लास्की आदर्श नागरिकता का बोध कराते हुए लिखते हैं कि नागरिकता मानव के शिक्षित निर्णय का जनकल्याण में प्रयोग है। इस प्रकार आदर्श नागरिक की परिभाषा करते हुए कहा जा सकता है कि सामाजिक क्षेत्र के प्रति रुचि रखने वाले उस उत्तम मनुष्य को आदर्श नागरिक कहा जा सकता है, जिसके द्वारा अपने अधिकारों का ठीक प्रकार से उपभोग और कर्तव्यों का उचित रूप से पालन किया जाता है। "

आदर्श नागरिकता के तत्व (Elements of Ideal Citizenship)—

आदर्श नागरिकता को ठीक प्रकार से समझने के लिए आदर्श नागरिकता के तत्वों का पृथक रूप से अध्ययन करना उपयोगी होगा। आदर्श नागरिकता के प्रमुख तत्व निम्नलिखित कहे जा सकते हैं :

(1) जनकल्याण से प्रेरित अन्तःकरण (Conscience inspired by public welfare )

आदर्श नागरिक के लिए सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि उसमें व्यक्तिगत स्वार्थ की प्रबलता न हो और उसका अन्तःकरण जनकल्याण के उच्च आदर्शों से प्रेरित हो। वे व्यक्ति, जो स्वयं अपने परिवार या जाति के लिए समाज के हित का बलिदान कर देते हैं, आदर्श नागरिक नहीं कहे जा सकते। ऐसे स्वार्थी व्यक्ति न तो अपने मताधिकार का उचित प्रयोग कर सकते हैं और न ही दिन-प्रतिदिन के साधारण कार्य ईमानदारीपूर्वक कर सकते हैं। अतः आदर्श नागरिक केवल उसी व्यक्ति को कहा जा सकता है, जिसका अन्तःकरण जनकल्याण से प्रेरित हो और जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पर सम्पूर्ण समाज के हित को प्राथमिकता दे।

(2) सच्चरित्रता (chastity )—

केवल आदर्श व्यक्ति ही आदर्श नागरिक बन सकते हैं और आदर्श व्यक्ति केवल ऐसे ही व्यक्तियों को कहा जा सकता है, जिसमें सच्चरित्रता का बल हो। आदर्श नागरिक की कल्पना मूलतः नैतिक है और वही व्यक्ति जो सत्य और ईमानदारी के महत्व को समझता है एवं दृढ़ता और निर्भीकतापूर्वक अपने सिद्धान्तों के अनुसार कार्य करता है, एक आदर्श नागरिक कहा जा सकता है।

(3)  चैतन्य बुद्धि(Consciousness) –

चैतन्य बुद्धि का तात्पर्य उचित और अनुचित के बीच अन्तर कर सकने और विविध परिस्थितियों में समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का ज्ञान प्राप्त कर लेने की विवेक शक्ति से है। आदर्श नागरिक

का कार्य किन्हीं व्यक्तियों का अनुसरण ही नहीं, वरन् स्वविवेक के आधार पर मार्ग निश्चित करना होता है और चैतन्य बुद्धि सम्पन्न नागरिक ही इस प्रकार की जागरूकता का परिचय दे सकते हैं। ह्वाइट ने कहा है कि "सामाजिक जीवन की समस्याओं को उनके सच्चे रूप में समझने के लिए, दूरदर्शिता के साथ उन समस्याओं के सूक्ष्म निरीक्षण तथा उनके हल के लिए नागरिकों में व्यावहारिक ज्ञान और अनुभव का होना अत्यन्त आवश्यक है।

नागरिकों के द्वारा यह चैतन्य बुद्धि शिक्षा के आधार पर ही प्राप्त की जा सकती है। राष्ट्रपिता गांधी ने इस सम्बन्ध में शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है, “शिक्षा जो आत्मा का भोजन है, आदर्श नागरिकता की प्रथम शर्त है।" डॉ. बेनीप्रसाद ने भी लिखा है किशिक्षा श्रेष्ठ नागरिक के जीवन के वृत्त खण्ड की आधारशिला है, शिक्षा अवसर की समानता को प्रदान करने वाली है जो जीवन का प्रमुख तत्व है।

(4) विचारों की उदारता (Generosity of ideas ) -

आदर्श नागरिक के लिए उदार विचार अत्यन्त आवश्यक हैं। नागरिक जीवन की सफलता पारस्परिक व्यवहार में उचित सामंजस्य स्थापित करने पर निर्भर करती है। विचारों की उदारता के बिना हम दूसरों के साथ आवश्यक सामंजस्य स्थापित नहीं कर सकते हैं। विचारों की यह उदारता शिक्षा, व्यापक दृष्टिकोण और आत्मसंयम से उत्पन्न होती है।

(5) आचार की शिष्टता और श्रेष्ठ आदतें (Etiquette and best habits of conduct )—

शिष्ट व्यवहार सभ्यता का प्रतीक है और व्यवहार की शिष्टता के आधार पर हम कुछ भी व्यय किये बिना दूसरे प्राणियों को सुख पहुंचा सकते हैं। सामान्य समझी जाने वाली आदतें भी जैसे घर और आस-पास की सफाई, मित्रों, अतिथियों, महिलाओं तथा विरोधियों के प्रति भी विनम्र भाषा का प्रयोग, आदि अच्छे नागरिक जीवन के निर्माण में सहायक होते हैं।

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(6) सामान्य आर्थिक शक्ति  General Economic Power ) 

वैसे तो व्यक्ति अपने आन्तरिक गुणों के आधार पर आदर्श नागरिक के रूप में जीवन व्यतीत कर सकता है, लेकिन साधारणतया ऐसा देखा गया है कि चरित्र बल और चैतन्य बुद्धि से सम्पन्न नागरिक भी उस समय तक एक आदर्श नागरिक के रूप में जीवन व्यतीत नहीं कर पाते हैं, जब तक कि उसके पास सामान्य आर्थिक शक्ति न हो। इस कारण वर्तमान परिस्थितियों में सामान्य आर्थिक शक्ति को भी आदर्श नागरिक का एक बाहरी तत्व कहा जा सकता है।

(7) अधिकार तथा कर्तव्यों का ज्ञान और पालन (Knowledge and observance of rights and duties)

-आदर्श नागरिक के लिए एक बहुत अधिक जरूरी बात यह है कि व्यक्ति को अपने अधिकार और कर्तव्य का सही रूप में ज्ञान होना चाहिए। जब तक व्यक्ति यह नहीं जानता कि उसके अधिकार तथा कर्तव्य क्या हैं, तब तक न तो वह अपने अधिकारों का उपभोग कर सकता है और न ही अपने कर्तव्यों का पालन ।

अधिकार और कर्तव्यों के ज्ञान के साथ ही यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति अपने अधिकारों का सही प्रकार से उपभोग और कर्तव्यों का उचित रूप में पालन करे। अनेक बार जबकि देश में चुनाव हो रहे होते हैं, तब व्यक्ति या तो अपने मताधिकार के उपयोग का कष्ट ही नहीं करते अथवा उनके द्वारा बिना सोचे-समझे

अपने मताधिकार का प्रयोग कर दिया जाता है। यह व्यक्ति के द्वारा अपने अधिकार और कर्तव्यों की उपेक्षा

का प्रतीक है और इस प्रकार के व्यक्तियों को आदर्श नागरिक नहीं कहा जा सकता। अधिकारों का उचित प्रयोग तथा कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन आदर्श नागरिकता का एक महत्वपूर्ण तत्व है।

(8) सार्वजनिक क्षेत्र में रुचि (Interest in the public sector) —

आदर्श नागरिक के लिए आवश्यक है कि वह सम्पूर्ण समाज को अपने परिवार के समान ही समझे और समाज एवं राज्य की उन्नति में उसी प्रकार रुचि ले, जिस प्रकार की रुचि लेकिन 'कोउ नृप होय, हमें का हानि' एक व्यक्ति अपने परिवार की उन्नति में लेता है। सभी गुणों से सम्पन्न, वाली विचारधारा वाले व्यक्ति को आदर्श नागरिक नहीं कहा जा सकता है।

(9) कर्तव्यपरायणता ( Duty of duty) 

राज्य और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों को ठीक प्रकार से सम्पादन करने वाले व्यक्तियों को ही आदर्श नागरिक कहा जा सकता है। इस प्रकार के कर्तव्यों के अन्तर्गत नागरिकों को प्रत्येक परिस्थिति में राज्य की रक्षा के लिए तत्पर रहना चाहिए, सार्वजनिक अधिकारियों को उनके कर्तव्यपालन में सहायता दी जानी चाहिए, कानून का विवेकपूर्ण पालन किया जाना चाहिए, और राज्य द्वारा निर्धारित कर निश्चित समय पर चुकाये जाने चाहिए। आदर्श नागरिक के सम्बन्ध में कार्लायल ने कहा है कि 'कर्म ही उसका धर्म होता है' (Work is worship)

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