स्वतन्त्रता [LIBERTY]

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 स्वतन्त्रता [LIBERTY]

स्वतन्त्रता [LIBERTY]


स्वतन्त्रता का महत्व(importance of freedom)-

मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए अधिकारों का अस्तित्व नितान्त आवश्यक होता है और व्यक्ति के विविध अधिकारों में स्वतन्त्रता का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। बर्ट्रेण्ड रसेल कहते हैं कि स्वतन्त्रता की इच्छा व्यक्ति की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है और इसी के आधार पर सामाजिक जीवन का निर्माण सम्भव है। मनुष्य का सम्पूर्ण भौतिक, मानसिक एवं नैतिक विकास स्वतन्त्रता के वातावरण में ही सम्भव है। इटली के प्रसिद्ध देशभक्त मैजिनी (Mazzini) का कथन है कि "स्वतन्त्रता (Liberty)के अभाव में आप अपना कोई कर्तव्य पूरा नही कर सकते है। अतएव आपको स्वतन्त्रता का अधिकार दिया जाता है और जो भी शक्ति आपको इस अधिकार से वंचित रखना चाहती है, उससे जैसे भी बने, अपनी स्वतन्त्रता छीन लेना आपका कर्तव्य है।“

स्वतन्त्रता का अर्थ(MEANING OF LIBERTY/FREEDOM)-

आधुनिक युग में स्वतन्त्रता शब्द सबसे अधिक लोकप्रिय है और इस शब्द की लोकप्रियता का परिणाम यह हुआ कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार स्वतन्त्रता के अलग-अलग अर्थ लेता है। अधिकांश मनुष्य स्वतन्त्रता का अर्थ मनमानी करने से या बिना किसी दूसरे व्यक्ति के हस्तक्षेप के अपनी इच्छानुसार कार्य करने से लेते हैं। स्वतन्त्र विचारक स्वतन्त्रता का अर्थ प्राचीन परम्पराओं एवं बन्धनों से होने से लेते हैं, आध्यात्मिक सन्त स्वतन्त्रता का अभिप्राय सांसारिक मोह माया से मुक्त होने से लेते हैं और परतन्त्र देश के निवासी स्वतन्त्रता को स्वराज्य का पर्यायवाची समझते हैं किन्तु व्यवहार में प्रचलित स्वतन्त्रता के इन विविध अर्थों में कोई भी अर्थ पूर्ण नहीं है।

स्वतन्त्रता के दो पक्ष हैं :

(1) नकारात्मक स्वतन्त्रता (Negative Liberty) और (2) सकारात्मक स्वतन्त्रता (Positive Liberty) स्वतन्त्रता की धारणा को सम्पूर्ण रूप से समझने के लिए स्वतन्त्रता के दो पक्षों का पृथक-पृथक ज्ञान प्राप्त कर लेना आवश्यक हो जाता है :

(1)नकारात्मक स्वतन्त्रता-

स्वतन्त्रता का अंग्रेजी रूपान्तर 'लिबर्टी' (Liberty) लैटिन भाषा के लिवर (Liber) शब्द से निकला है जिसका अर्थ होता है, 'बन्धनों का अभाव' किन्तु 'स्वतन्त्रता' शब्द की व्युत्पत्ति के आधार पर प्रचलित इस अर्थ को स्वीकार नहीं किया जा सकता। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहते हुए मनुष्य असीमित स्वतन्त्रता का उपभोग कर ही नहीं सकता। उसे सामाजिक नियमों की मर्यादा के अन्तर्गत रहना होता है। अतः राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत स्वतन्त्रता की जिस रूप में कल्पना की जाती है, उस रूप में स्वतन्त्रता मानवीय प्रकृति और सामाजिक जीवन के इन दो विरोधी तत्वों (बन्धनों का अभाव और नियमों के पालन) में सामंजस्य का नाम है और इसकी परिभाषा करते हुए कहा जा सकता है कि "स्वतन्त्रता व्यक्ति की अपनी इच्छानुसार कार्य करने की शक्ति का नाम है बशर्ते कि इनसे दूसरे व्यक्ति की इसी प्रकार की स्वतन्त्रता में कोई बाधा न पहुंचे।" 1798 की 'मानवीय अधिकार घोषणा' में यही कहा गया है किस्वतन्त्रता वह सब कुछ करने की शक्ति का नाम है जिससे दूसरे व्यक्तियों को आघात न पहुंचे।सीले, लास्की, मैकेंजी, आदि विद्वानों ने भी स्वतन्त्रता की परिभाषा लगभग इसी प्रकार से की है।

सीले के अनुसार, “स्वतन्त्रता अति शासन की विरोधी है।" "

प्रो. लॉस्की के शब्दों में, “स्वतन्त्रता से मेरा अभिप्राय यह है कि उन सामाजिक परिस्थितियों के अस्तित्व पर प्रतिबन्ध न हो, जो आधुनिक सभ्यता में मनुष्य के सुख के लिए नितान्त आवश्यक हैं।"

मैकेंजी के अनुसार, “स्वतन्त्रता सभी प्रकार के प्रतिबन्धों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबन्धी के स्थान पर उचित प्रतिबन्धों की व्यवस्था है। "

(2)सकारात्मक स्वतन्त्रता (Positive Liberty)

सीले, फ्रीमैन और मैकेंजी आदि विद्वानों द्वारा स्वतन्त्रता की जो परिभाषाएं की गई हैं उसमें स्वतन्त्रता का चित्रण अनुचित और अनावश्यक प्रतिबन्धों के अभाव के रूप में किया गया है। इस प्रकार ये परिभाषाएं स्वतन्त्रता के नकारात्मक स्वरूप को प्रकट करती हैं। किन्तु जैसा कि गैटल ने कहा है कि 'स्वतन्त्रता का समाज में केवल नकारात्मक स्वरूप ही नहीं है, वरन् सकारात्मक स्वरूप भी है।'

स्वतन्त्रता का लक्ष्य होता है व्यक्तियों के व्यक्तित्व का विकास और व्यवहार में यह अनुभव किया कि प्रतिबन्धों के अभाव मात्र से स्वतन्त्रता के लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाती। ऐसी स्थिति में काण्ट और फिक्टे ने सकारात्मक स्वतन्त्रता की दिशा में संकेत दिए और ब्रिटेन के आर्दशवादी विचारक टी. एच. व्रीन ने विधिवत् रूप में सकारात्मक स्वतन्त्रता की धारणा का पतिपादन किया। काण्ट 'नैतिक स्वाधीनता की धारणा' का प्रतिपादन करते हुए कहता है : राज्य का कर्तव्य है कि वह व्यक्ति के स्वाधीनता के मार्ग की बाधाओं को बाधित करे तथा ऐसी बाहरी सामाजिक स्थितियों की स्थापना करे, जिसके अन्तर्गत नैतिक विकास सम्भव हो सके। फिक्टे के अनुसार, कोई भी व्यक्ति समाज में रहकर ही अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त कर सकता है। अतः राज्य का प्रमुख कार्य ऐसी दशाओं का निर्माण करना है, जिनमें व्यक्ति को स्वतन्त्रता प्राप्त हो ।

सकारात्मक स्वतन्त्रता की धारणा का विधिवत् रूप में प्रतिपादन टी. एच. ग्रीन ने ही किया है। सर्वप्रथम तो स्वतन्त्रता के सकारात्मक स्वरूप की नकारात्मक स्वरूप से भिन्नता बतलाते हुए टी. एच. ग्रीन ने लिखा है किजिस प्रकार सौन्दर्य कुरूपता के अभाव का नाम ही नहीं होता, उसी प्रकार स्वतन्त्रता प्रतिबन्धों के अभाव का नाम नहीं है।आगे चलकर ग्रीन स्वतन्त्रता के सकारात्मक रूप को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं किस्वतन्त्रता ऐसे कार्य करने और उपभोग करने की शक्ति का नाम है, जो करने योग्य या उपभोग के योग्य हों। स्वतन्त्रता का लक्ष्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का सर्वोच्च विकास होता है और यदि राज्य इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु श्रम, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि के सम्बन्ध में नियमों की व्यवस्था करता है तो इससे व्यक्ति की स्वतन्त्रता सीमित नहीं होती, वरन् उसमें वृद्धि ही होती है।

बीसवीं सदी में लॉस्की और गार्नर, आदि विद्वानों ने सकारात्मक स्वतन्त्रता की इस धारणा को ही अपनाया है। लॉस्की स्वतन्त्रता को मनुष्य के विकास हेतु अति आवश्यक शर्त मानते हुए स्वतन्त्रता की व्याख्या इन शब्दों में करते हैं: “स्वतन्त्रता उस वातावरण को बनाए रखना है, जिसमें व्यक्ति को अपने जीवन का सर्वोत्तम विकास करने की सुविधा प्राप्त हो ।" वार्कर ने भी स्वतन्त्रता के सकारात्मक पक्ष पर बल दिया है। वह व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को सामाजिक हित के सन्दर्भ में देखता है और स्वतन्त्रता को व्यक्तित्व के विकास की एक स्थिति मानते हुए स्वतन्त्रता, समानता और न्याय में घनिष्ठ सम्बन्ध का प्रतिपादन करता है। वर्तमान समय में राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में सर्वाधिक प्रमुख रूप से 'लोककल्याणकारी राज्य' की धारणा ही मान्य है और यह धारणा सकारात्मक स्वतन्त्रता के विचार पर आधारित है।

इस प्रकार सकारात्मक रूप से स्वतन्त्रता का तात्पर्य ऐसे वातावरण और परिस्थितियों की विद्यमानता से है जिसमें व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सके।

स्वतन्त्रता के इस नकारात्मक और सकारात्मक रूप को दृष्टि में रखते हुए स्वतन्त्रता के दो तत्व कहे जा सकते हैं :

 न्यूनतम प्रतिबन्ध स्वतन्त्रता

(1) न्यूनतम प्रतिबन्ध स्वतन्त्रता का प्रथम तत्व यह है कि व्यक्ति के जीवन पर शासन और समाज के दूसरे तत्वों की ओर से न्यूनतम प्रतिबन्ध होने चाहिए जिससे व्यक्ति अपने विचार और कार्य व्यवहार में

अधिकाधिक स्वतन्त्रता का उपभोग कर सके।

व्यक्तित्व के विकास हेतु सुविधाएं स्वतन्त्रता का दूसरा तत्व

(2) व्यक्तित्व के विकास हेतु सुविधाएं स्वतन्त्रता का दूसरा तत्व यह है कि समाज और राज्य द्वारा व्यक्ति को उसके व्यक्तित्व के विकास हेतु अधिकाधिक सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।

अतः स्वतन्त्रता की परिभाषा करते हुए कहा जा सकता है कि "स्वतन्त्रता जीवन की ऐसी अवस्था का नाम है जिसमें व्यक्ति के जीवन पर न्यूनतम प्रतिबन्ध हो और व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास हेतु अधिकतम सुविधाएं प्राप्त हों।"

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April 27, 2025